अनफेयर लाइफ: हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?

Unfair life ko fair kaise banaye?

क्या लाइफ सच में अनफेयर होती है? हम में से ज़्यादातर लोग सोचते है- हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है? मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है? एक मुसीबत खत्म नहीं होती और दूसरी दौड़ कर आ जाती है? मेरे साथ ही क्यों होता है ऐसा?

मैं भी ऐसा ही सोचती थी. लेकिन असल कारण जानने के बाद मुझे पता है की मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. अपनी ज़िन्दगी की एक छोटी सी झलक आपको दिखाती हूँ.

मैं दिल्ली में पली- बड़ी हूँ. पहले शाहदरा रहती थी और अब द्वारका रहती हूँ. शाहदरा में सब साथ रहते थे, रिश्तेदार भी आसपास रहते थे, और गली में भी सब बहुत प्यार करते थे। मेरे काफी सारे दोस्त थे वहां. मगर कुछ हालातों के चलते हमें यहाँ सबसे दूर आना पड़ा. यहाँ प्यारी नानी, मासी साथ थी.

शाहदरा से जब यहाँ आना था, मुझे मालुम था की अब मिल नहीं पाऊँगी इसलिए सोचा था अपनी पक्की सहेलियों से उनके नंबर लेकर आउंगी, तो 2 खास दोस्तों के नंबर मैंने लिए और बाकी 3 दोस्तों के नंबर डैडी ने अपने फ़ोन में सेव कर लिए थे.

कुछ दिन बाद जब दोस्तों की याद बहुत ज़्यादा सताने लगी तो नानी के फोन से पहला कॉल अपनी सबसे अच्छी दोस्त आयुषी के नंबर पर लगाया. ट्रिन- ट्रिन के शोर में मैं सोच रही थी की सबसे पहले उसे क्या बोलूंगी, प्रैंक कॉल करने का सोच ही रही थी की सामने से- “हेलो”. (मुझे लगा आयुषी की मम्मी है इसलिए) मैंने बोला- नमस्ते आंटी, आयुषी है? उन्होंने बोला- यहाँ कोई आयुषी नहीं रहती और फ़ोन काट दिया. ये सुनके थोड़ा बुरा लगा लेकिन फिर सोचा हो सकता है आयुषी को अपना नंबर याद न हो इसलिए गलत नंबर लिख दिया हो. फिर मैंने सोचा चलो तान्या अरोरा ब्रेड का पकोड़ा को फ़ोन किया जाए, लेकिन उसका तो नंबर ही अवैध बता रहा था.

निराशा में जब नानी को फ़ोन वापस करने गई तब तक मैं उन दोनों नम्बरो के आखिरी अंक बदल कर कभी 8 तो कभी 5, कभी 6 तो कभी 2, बहुत लोगों को फ़ोन लगा चुकी थी. ये सोच कर की शायद इनमें से एक मेरे दोस्त का हो लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था दोनों पर. लेकिन क्या करती वो कौन सा मेरे पास थी जो मैं उन पर गुस्सा निकाल पाती.

मैं चुप- चाप घर लौट आयी और बालकनी में जा कर खड़ी हो गयी. फिर याद आया डैडी के पास भी तो नंबर सेव किये थे, रात को आएंगे तो उनसे नंबर लूँगी और कल नानी के फ़ोन से फ़ोन करुँगी.

मगर जो सोचा था उससे बिलकुल विपरीत हुआ. मम्मी के हवाले से पता चला की डैडी शाहदरा गए हुए हैं और कल दिन में आएंगे. अगले दिन डैडी जब देर से घर आये तो दिल तोड़ने वाली खबर लेकर आये. रास्ते में उनका फ़ोन कहीं गिर गया था। डैडी अक्सर ऐसा मज़ाक करते हैं इसलिए मैंने चुपके से मम्मी के फ़ोन से कॉल लगाया लेकिन जब फ़ोन बंद बता रहा था तब यकीन हुआ की इस बार सच था. 

मेरे अरमानों पर पानी फिर चुका था. डैडी के फोन खोने से ज़्यादा दुःख मुझे मेरे दोस्तों से अब कभी बात न कर पाने का था. ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ खत्म हो गया. 

मैं कमरे में जा कर उस दिन बहुत रोई आयुषी, तान्या, मनीष, मोहित, हर्षिता, नन्ने सबका नाम लेकर रोई. इतना रोई की जोश- जोश में भगवान को चैलेंज कर दिया की मेरे दोस्तों से मेरी बात करवाओ नहीं तो मैं कभी भी दोस्त नहीं बनाऊंगी, और बेस्ट फ्रेंड तो कभी भी नहीं बनाऊंगी(खाना कभी नहीं खाऊंगी बोलने का सोचा था लेकिन मम्मी ने उस दिन पनीर पकोड़े बना रखे थे)

दिन बीतते गए, भगवन ने मेरी एक भी दोस्त से बात नहीं कराई. इस बीच एक लड़की जिसका नाम शगुन था वो बहुत बातूनी थी, लेकिन अच्छी थी जैसी भी थी. उससे मेरी बात होनी शुरू हुई, हम दोनों एक दूसरे की मदद करते थे. लेकिन कुछ समय बाद मैडम ने सबके सीट पार्टनर फिक्स कर दिए. मेरा पार्टनर था एक सोतड़ू लड़का कुनाल. हर वक़्त सोता रहता था बहुत गुस्सा आता था. लेकिन वही मैं शगुन को देखती थी की उसका जब मन करता था वो मुझसे बात करने आ जाती थी. मुझे तो मैडम की डांट से डर लगता था इसलिए मैं उसके पास नहीं जाती थी. उसको बुला लेती थी क्योंकि वो निडर थी, हिम्मत वाली थी. ऐसे ही मेरी पहली दोस्त बनी थी शगुन.

हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है

जैसे ही याद आया की भगवन से लगाया आधा चैलेंज मैं हार चुकी हूँ, मैंने फट से जा कर अपना चैलेंज अपडेट कर दिया की जब तक आप मेरे दोस्तों से बात नहीं करवाते तब तक मैं गली में कोई दोस्त नहीं बनाऊंगी.

2 साल बीते, 2012 में जब अकेलापन बहुत लगने लगा तब सबसे छुपकर डायरी लिखना शुरू किया. उसमें मैंने जीवन में जब भी मेरे साथ कुछ बुरा होता था, मैं लिखती थी. कभी- कभी लिखते- लिखते रो दिया करती थी लेकिन डायरी मेरी घर की सबसे अच्छी दोस्त बन चुकी थी. भगवन से शिकायत करने के बजाये अब शिकायत मैं खुद से करने लगी थी. क्यों हूँ मैं ऐसी? क्यों मुझसे कोई बात नहीं करता? क्या शाहदरा में किसी को मेरी याद नहीं आती? यहाँ मेरा दोस्त क्यों नहीं है? मेरे साथ ही सब बुरा क्यों होता है?

शुक्र है स्कूल के दोस्तों से अच्छी बनने लगी थी नहीं तो डिप्रेशन दूर नहीं था. मैं घर में बहुत चिड़चिड़ी हो गयी थी. घर में किसी से खुल कर मैं बात नहीं करती थी, लेकिन दादी और बाबा मेरे पक्के दोस्त थे. हालाँकि बाबा छोटी की साइड लेते थे लेकिन मीठे के मामले में उनकी और मेरी बहुत अच्छी सेटिंग थी.

अब अगला साल 2016 सबसे बुरा साल बन कर आया. उसने मुझसे मेरे बाबा छीन लिए. उस साल क्योंकि बाबा 5 -6 बार हॉस्पिटल जा चुके थे, मैंने भगवान को बोला था की आप जल्दी से बाबा को ठीक कर के लाओ, मैं नहीं जाऊंगी हॉस्पिटल उनसे मिलने, (जबकि सब कह रहे थे की मिल आ बाबा याद कर रहे हैं) आप उनको घर लेकर आना. मुझे विश्वास है आप लाओगे, लेकिन हर बार की तरह वो नहीं लाये.

उसी साल मैं पहली बार फेल हुई थी, पेपर मैथ्स का था और पूरे साल की मेहनत जैसे भूल सी गयी थी, नाम लिखने के अलावा जो भी कर रही थी नहीं जानती थी, दिमाग में बाबा और भगवन से की हुई आखिरी बातों के अलावा मानो जैसे कुछ था ही नहीं.

यहाँ भगवन अब तक 3 बार मेरा दिल तोड़ चुके थे.

स्कूल के बाद धीरे- धीरे कर के मेरे सभी अच्छे दोस्त मुझसे दूर हो गए, भगवन से आस लगानी छोड़ दी थी, किताबों को दोस्त बना रखा था. तभी एक किताब हाथ में आयी जिसने जीवन जीने के सही मायने सिखाये और मैंने जाना-

  • ज़िन्दगी में जो भी होता है वो हमारे भले के लिए होता है, और जो होता है उसके पीछे कोई न कोई कारण ज़रूर छुपा होता है. ज़िंदगी एक मज़ेदार सफर का नाम है, उसमें रोड़े, पत्थर, काटें, फूल सब आएंगे, कुछ हमराही आएंगे तो कुछ पल भर के साथी आएंगे लेकिन जो भी आएंगे किसी कारण से ही आएंगे।
  • मैंने धीरे- धीरे जब अपने साथ हुई और हो रही घटनाओं पर गौर करना शुरू किया तो पाया की ज़िन्दगी से जब शिकायतें बढ़ने लगे तो समझ लेना चाहिए की कोशिशें कम हो रही हैं.
  • ये भी जाना की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, जो कोशिश करते हैं उन्हें सफलता देर से ही सही लेकिन मिलती ज़रूर है। स्कूल में जब फेल हो जाते थे तो डर जाते थे लेकिन क्या तब कोशिश करना बंद कर देते थे? पढ़ना बंद? नहीं. क्यों? क्योंकि माँ -बाप साथ होते थे, दोस्त गवाने का डर साथ होता था. ठीक वैसे ही है ज़िंदगी जब तक आप कोशिश करते हो तब तक आपका विकास होता रहता है लेकिन जब आप कोशिश करना बंद कर देते हो तो अपनों की तरह भगवान आते हैं आपको पाठ पढ़ा कर, ज़िंदगी का मज़ा कैसे लेना है सीखाने के लिए।
  • लाइफ अनफेयर कभी नहीं होती, उसको जीने का हमारा तरीका होता है। 
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